![]() |
Mokshada Ekadashi: ब्रह्मांड पुराण में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में आनेवाली "मोक्षदा एकादशी" का महात्म्य भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं !
युधिष्ठिर महाराज ने पूछा, “हे देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का क्या नाम है? उसे किस प्रकार करना चाहिए, किस देवता को पूजना चाहिए? कृपया इस विषय पर विस्तार से कहें !”
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, “ मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी मोक्षदा कहलाती है| इसकी महिमा सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है ! पापहरण करती है !
हे राजन ! इस दिन तुलसी मंजरी और धुप-दीप के साथ भगवान् दामोदर की पूजा करनी चाहिए ! बड़े बड़े पातकों का नष्ट करने वाली मोक्षदा एकादशी की रात्री में मेरी प्रसन्नता के लिए नृत्य, कीर्तन तथा कथा करके जागरण करना चाहिए ! जिनके पूर्वज नरक में है, वे इस एकादशी के पूण्य को पूर्वजों को दान करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है |”
मोक्षदा एकादशी कथा
प्राचीन काल में वैष्णव निवासित रमणीय चम्पक नगर में वैखानस महाराज राज्य करते थे ! वे अपनी प्रजा का संतान की भाँती पालन करते थे ! एक रात को उन्होंने स्वप्न में देखा की उनके पितर नीच नरक योनी में है ! अपने पितरों की अवस्था से आश्चर्यचकित होकर अगले प्रात:काल में ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न के बारे में कहा !महाराज ने कहा, “हे ब्राह्मणों ! मैंने अपने पितरों को नरक में देखा है ! बराबर रुदन-क्रंदन करते हुए मुझे कह रहे थे तुम हमारे तनुज हो, तुम ही हमें इस स्थिति से निकाल सकते हो ! हे द्विजवर ! मैं उनकी इस अवस्था से अत्यंत विचलित हूँ ! क्या करना चाहिए ? कहाँ जाना चाहिए ? कुछ समझ में नहीं आता !
हे द्विजश्रेष्ठ ! कौनसा व्रत, तप या योग करने से मेरे पूर्वजों का नरक से उद्धार होगा, कृपया मुझ से कहिये ! मेरे जैसा बलवान और साहसी पुत्र होते हुए भी मेरे माता-पिता नरक में हो, तो मेरा जीवन व्यर्थ है ?”
ब्राह्मण कहने लगे, “राजन ! निकट ही पर्वत मुनि का आश्रम है, उन्हें भूत-भविष्य ज्ञात है ! हे नृपश्रेष्ठ ! आप उनके पास जाईये!” ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा पर्वत मुनि के आश्रम में गये और मुनिं को दंडवत करके
उनके चरण स्पर्श किए ! मुनिने भी राजा का कुशल क्षेम पुछा!
महाराज कहने लगे, “स्वामिन ! आपकी कृपा से राज्य में सब कुशल है ! किन्तु मैंने स्वप्न में देखा की मेरे पूर्वज नरक में हैं ! कौनसे पूण्य से उनको मुक्ति मिलेगी कृपया आप कहिये !”
राजा के वचन को सुनकर मुनि कुछ काल ध्यानस्थ हुए और रजा से कहा, “महाराज ! मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष को मोक्षदा एकादशी आती है ! उस व्रत का आप सभी पालन करके उसका पूण्य पूर्वजों को दान कीजिये ! उस पूण्य के प्रभाव से उनकी नरक से मुक्ति होगी !”
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर ! मुनि के वचन सुनते ही राजा ने घर लौटकर मोक्षदा एकादशी ( Mokshada Ekadashi ) को धारण करके उसका पूण्य अपने पितरों को दान किया ! उस पूण्य के दान करते ही आकाश से पुष्पवृष्टि हुई ! वैखानस महाराज के पिता-पूर्वज नरक से बाहर निकल कर आकाश में आये और राजा से कहा, “पुत्र ! तुम्हारा कल्याण हो !” इस आशीर्वाद को देकर वे सब स्वर्ग में गए !
इसे भी पढ़ें :
- षट्तिला एकादशी व्रतकथा
- मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
- कैसे इंद्र के श्राप से माल्यवान को मिली मुक्ति
- पुत्रदा एकादशी व्रतकथा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें